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राग दरबारी (उपन्यास) : श्रीलाल शुक्ल

सड़क के किनारे एक आदमी दो-चार मज़दूरों को इकट्ठा करके उन पर बिगड़ रहा था। प्रिंसिपल साहब उनके पास खड़े हो गये। दो-चार मिनट उन्होंने समझने की कोशिश की कि वह आदमी क्यों बिगड़ रहा है। मज़दूर गिड़गिड़ा रहे थे। प्रिंसिपल ने समझ लिया कि कोई ख़ास बात नहीं है, मजदूर और ठेकेदार सिर्फ अपने रोज -रोज के तरीकों का प्रदर्शन कर रहे हैं और बातचीत में ज़िच पैदा हो गयी है। उन्होंने आगे बढ़कर मजदूरों से कहा, " जाओ रे, अपना-अपना काम करो। ठेकेदार साहब से धोखाधड़ी की तो जूता पड़ेगा।"

मजदूरों ने प्रिंसिपल साहब की ओर कृतज्ञता से देखा। फुरसत पाकर वे अपने-अपने काम में लग गये। ठेकेदार ने प्रिंसिपल से आत्मीयता के साथ कहा, " सब बेईमान हैं। जरा-सी आँख लग जाये तो कान का मैल तक निकाल ले जायें। ड्योढ़ी मजदूरी माँगते हैं और काम का नाम सुनकर काँखने लगते हैं। "

प्रिंसिपल साहब ने कहा , " सब तरफ यही हाल है। हमारे यहाँ ही लीजिए--कोई मास्टर पढ़ाना थोड़े ही चाहता है? पीछे पड़ा रहता हूँ तब कहीं---!"

वह आदमी ठठाकर हँसा। बोला, "मुझे क्या बताते हैं? यही करता रहता हूँ। सब जानता हूँ।" रुककर उसने पूछा , "इधर कहाँ जा रहे थे?"

इसका जवाब क्लर्क ने दिया, " वैद्यजी के यहाँ। चेकों पर दस्तखत करना है।"

"करा लाइए।" उसने प्रिंसिपल को खिसकने का इशारा दिया। जब वे चल दिये तो उसने पूछा, "और क्या हाल-चाल है?"

प्रिंसिपल रुक गये। बोले , "ठीक ही है। वही खन्ना-वन्ना लिबिर- सिबिर कर रहे हैं , आप लोगों के और मेरे खिलाफ प्रोपेगैंडा करते घूम रहे हैं।"

उसने जोर से कहा , " आप फिक्र न कीजिए। ठाठ से प्रिंसिपली किये जाइए। उनको बता दीजिए कि प्रोपेगैंडा का जवाब है डण्डा। कह दीजिए कि यह शिवपालगंज है, ऊँचा-नीचा देखकर चलें।"

प्रिंसिपल साहब अब आगे बढ़ गये तो क्लर्क बोला, " ठेकेदार साहब को भी कॉलिज-कमेटी का मेम्बर बनवा लीजिए। काम आयेंगे।"

प्रिंसिपल साहब सोचते रहे। क्लर्क ने कहा, " चार साल पहले की तारीख में संरक्षकवाली रसीद काट देंगे। प्रबन्धक कमेटी में भी इनका होना जरुरी है। तब ठीक रहेगा।"

प्रिंसिपल साहब ने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया। कुछ रुककर बोले, "वैद्यजी से बात की जायेगी। ये ऊँची पालिटिक्स की बातें हैं। हमारे -तुम्हारे कहने से क्या होगा?"

एक दूसरा आदमी साइकिल पर जाता हुआ दिखा। उसे उतरने का इशारा करके प्रिंसिपल साहब ने कहा, " नन्दापुर में चेचक फैल रही है और आप यहाँ झोला दबाये हुए शायरी कर रहे हैं?"

उसने हाथ जोड़कर पूछा , " कब से? मुझे तो कोई इत्तिला नहीं है।"

जिसकी दुम में अफसर जुड़ गया , समझ लो, अपने को अफलातून समझने लगा।

प्रिंसिपल साहब ने भौंहें टेढ़ी करके कहा, "तुम्हें शहर से फुरसत मिले तब तो इत्तिला हो। चुपचाप वहाँ जाकर टीके लगा आओ, नहीं तो शिकायत हो जायेगी। कान पकड़कर निकाल दिये जाओगे। यह टेरिलीन की बुश्शर्ट रखी रह जायेगी।"

वह आदमी घिघियाता हुआ आगे बढ़ गया। प्रिंसिपल साहब क्लर्क से बोले' "ये यहाँ पब्लिक हेल्थ के ए.डी .ओ. हैं। जिसकी दुम में अफसर जुड़ गया , समझ लो, अपने को अफलातून समझने लगा।"

"ये भी न जाने अपने को क्या लगाते हैं! राह से निकल जाते हैं, पहचानते तक नहीं।"

"मैंने भी सोचा, बेटा को झाड़ दिया दिया जाये।"

क्लर्क ने कहा, "मैं जानता हूँ। यह भी एक ही चिड़ीमार है। "

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